Friday, April 12

13 अप्रैल : जलियांवाला बाग़ हत्याकांड





रक्त-रक्त बिखरा माटी में,
चीख-चीख गूंजे हर ओर |
लाश-लाश का ढेर लगा था,
उत्तर-दक्खिन चारों ओर ||||

"वैशाखी" का था त्यौहार,
बच्चे सजकर थे तैयार |
पूरा पिण्ड निकलकर आया,
करने खुशियों की बौछार ||||

भीड़ जमा थी बाग में,
देश जल रहा आग में |
फिरंगियों को लगा डर,
कहीं दम ना करें ये नाक में ||||

१३ अप्रैल की शाम हुयी,
अंग्रेजी हुकूमत बदनाम हुयी |
हजारों देशवासियों की अमर,
शहादत देश के नाम हुयी ||||

एक राह पर फौज सवार हुयी,
बाग़ की दुनिया लाचार हुयी |
फिर चली दनादन गोलियां,
मासूमों के सीनों से पार हुयी ||||

इधर कारतूसों का गुबार,
उधर बिखर रहा था परिवार |
लगी कई छलांगें कुँए में,
पर जीवन का ना था आसार ||||

बच्चे, बूढ़े राख हुए,
घर के घर ही खाक हुए |
धीरे-धीरे चितायें भी ठंडी हो गयी मगर,
सरकारी आंकड़े ना साफ़ हुए ||||

जलियाँवाला श्मसान बन गया,
अमर शहीद निशान बन गया |
एक नन्हा "शेर सिंह",
एक रोज "उधम" जवान बन गया ||||

गया ब्रिटेन, डायर को खोजा,
डायर जो था हत्यारा |
भारत माँ के लाडले ने,
हत्यारे को घर में घुसकर मारा ||||

माँ भारती के बेटों में उधम का नाम लिया जाता है,
उधम के अफसानों का बच्चों को ज्ञान किया जाता है |
निजी स्वार्थ परित्यागकर जो मुल्क को कुर्बत देते हैं,
ऐसे वीर शहीदों को शत-शत नमन किया जाता है |
ऐसे वीर शहीदों को शत-शत नमन किया जाता है ||१०||

------------------------"जय हिंद"--------------------------
द्वारा --  "आशीष नैथानी"
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